Monday, April 26, 2021

कोरोनाः अस्पतालों में जगह नहीं, घर में भी जीना दूभर

 कोरोनाः अस्पतालों में जगह नहीं, घर में भी जीना दूभर 


दिल्ली और देश के कई शहरों के अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे हैं ऐसे में लोगों के पास घर पर ही बीमार लोगों का इलाज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. 


लेकिन लोगों के लिए घर पर भी इलाज करना बड़ा मुश्किल हो गया है क्योंकि राजधानी दिल्ली सहित कई शहरों में ऑक्सीजन की भारी क़िल्लत है, कोरोना संक्रमण के मरीज़ों को दी जाने वाली ज़रूरी दवाएँ बाज़ारों से ग़ायब हैं और इनकी कालाबाज़ारी हो रही है जहां ये दवाएँ कई गुने दाम पर बेची जा रही हैं. 






सोमवार को भारत में कोरोना संक्रमण के तीन लाख 52 हज़ार 991 मामले आए. 


अंशु प्रिया ने अपना पूरा रविवार ऑक्सीजन सिलेंडर की तलाश में लगा दिया. उनके ससुर की तबीयत हर बीतते दिन के साथ बिगड़ती जा रही है. उन्हें दिल्ली और नोएडा के किसी अस्पताल में बेड नहीं मिला और अब उन्हें ऑक्सीजन भी नहीं मिल रहा है लिहाज़ा ऑक्सीजन के लिए उन्हें ब्लैक मार्केट का रुख़ करना पड़ा.


उन्हें ब्लैक में 6000 रुपये की क़ीमत वाले सिलेंडर के लिए 50,000 रुपये देने पड़े. 






अब अंशु प्रिया की सास को भी साँस लेने में दिक़्क़त हो रही है और ये उन्हें और भी परेशान कर रहा है. वह कहती हैं कि अब दूसरा सिलेंडर ख़रीदना उनके लिए मुश्किल होगा. 


अंशु प्रिया की ये मुश्किलें इकलौता मामला नहीं है. दिल्ली, नोएडा, लखनऊ, इलाहाबाद और इंदौर जैसे कई शहरों में लोगों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे हैं और लोगों को घर पर ही इलाज की व्यवस्था करनी पड़ रही है. 


Watch Full Video Here :- https://youtu.be/Ws_sQLnbOUA


दिल्ली का हाल बाक़ी सभी शहरों से कहीं ज़्यादा ख़राब है, जहां किसी अस्पताल में एक भी आईसीयू बेड ख़ाली नहीं है. जो लोग इतने पैसे दे सकते हैं वो घरों पर ही नर्सों को बुला रहे हैं और डॉक्टरों से सलाह लेकर घर पर ही अपनों का इलाज करा रहे हैं. 


पिछले कुछ दिनों से रोज़ाना भारत में तीन लाख से ज़्यादा कोरोना के नए मामले सामने आ रहे हैं जो वैश्विक रिकॉर्ड है. 





ऐसे में अस्पतालों में संसाधन कम हैं और उसकी तुलना में मरीज़ कई गुना ज़्यादा हो गए हैं. ब्लड टेस्ट कराने से लेकर सीटी-स्कैन और एक्स-रे तक लोगों को हर चीज़ के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. 


लैब में इतने सैंपल आ चुके हैं कि टेस्ट के नतीजों के लिए लोगों को तीन से चार दिन तक इंतज़ार करना पड़ रहा है. इससे डॉक्टरों को भी संक्रमण कितना गंभीर है ये जानने में वक़्त लग रहा है. डॉक्टर संक्रमण को जाँचने के लिए सीटी स्कैन की सलाह भी दे रहे हैं लेकिन इसके लिए अप्वाइंटमेंट मिलने में ही कई दिन लग जा रहे हैं. 


डॉक्टरों का कहना है कि इससे कई मरीज़ों पर ख़तरा बढ़ रहा है. मैं कई ऐसे मामलों को जानता हूँ जहां मरीज़ों को अस्पतालों में बेड तो मिल गया, लेकिन टेस्ट रिपोर्ट ना होने के कारण उन्हें भर्ती नहीं किया गया.



अनुज तिवारी ने एक नर्स को काम पर रखा है जो उनके भाई के घर पर ही चल रहे इलाज में मदद करती हैं. अंजू की तमाम कोशिशों के बाद भी उनके भाई को अस्पताल में जगह नहीं मिली. 


दिल्ली के अस्पतालों में कुछ मरीज़ ऑक्सीजन की सप्लाई ना होने के कारण मर गए. 






बीते कुछ दिनों से दिल्ली के कई अस्पताल रोज़ाना ऑक्सीजन की कमी को लेकर चेतावनी दे रहे हैं. वो बताते हैं कि हमारे पास कुछ वक़्त की ऑक्सीजन बची है और कई मरीज़ों को ऑक्सीजन की कमी के कारण बचाना मुश्किल हो जाएगा. इसके बाद सरकार कार्रवाई करती है और ऑक्सीजन के टैंकर भेजे जाते हैं ताकि किसी तरह दिनभर अस्पतालों का गुज़ारा हो सके. 


दिल्ली के एक डॉक्टर ने कहा कि जिस तरह अस्पताल काम कर रहे हैं, इससे किसी कोई बड़ा हादसा होने का डर पैदा हो गया है.' 


अस्पतालों की हालत देखते हुए अनुज ने बेहद महँगी क़ीमत में एक ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर ख़रीदा है-जो हवा से ऑक्सीजन निकालने का काम करता है. डॉक्टर ने उनसे एंटी-वायरल दवा रेमडेसिवीर ख़रीदने को भी कहा है. लेकिन अनुज को ये दवा किसी मेडिकल स्टोर पर नहीं मिली. इलाज कर रहे डॉक्टर का कहना है कि अनुज के भाई को जल्द अस्पताल में भर्ती कराना होगा जहां उन्हें रेमडेसिवीर दी जा सके. 


वह कहते हैं, ''बेड ही नहीं है हम क्या करें? अब तो मैं उन्हें कहीं ले जा भी नहीं सकता क्योंकि पहले ही बहुत पैसे ख़र्च हो चुके हैं और अब मेरे पास पैसे भी नहीं बचे हैं. कोविड के मरीज़ को बचाने की जद्दोजहद अस्पताल ने निकल कर घरों तक आ गई है.'' 


जिन लोगों के परिवार वाले कोरोना पॉज़िटिव पाए जा रहे हैं वे लोग दुकानों से ये दवाएँ ख़रीद कर पहले ही रख ले रहे हैं ये सोच कर कि क्या पता जब हालात गंभीर हों अस्पताल ले जाना पड़ेगा तो इस दवा की ज़रूरत होगी. 


इस वक़्त भारत में सात कंपनियों के पास रेमडेसिवीर बनाने की ज़िम्मेदारी है और सरकार ने इन कंपनियों से प्रोडक्शन बढ़ाने को कहा है. लेकिन सरकार के वादे ज़मीनी हक़ीक़त में फ़ेल होते नज़र आ रहे हैं. 


एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. ललित कान्त कहते हैं कि सरकार ने दवाओं के प्रोडक्शन को बढ़ाने का फ़ैसला काफ़ी देरी से लिया. ''हालाँकि ये दवा काले बाज़ार में उपलब्ध है जो बताता है कि सप्लाई चेन में भी गड़बड़ी है. हमने पहली लहर से कुछ नहीं सीखा.'' 


दूसरी दवा जिसकी काफ़ी माँग है वो है टोसिलीज़ुमाब. आम तौर पर ये दवा गठिया की बीमारी में इस्तेमाल होता है लेकिन कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि ये कोविड के गंभीर मरीज़ों को वेंटिलेटर पर जाने से बचा सकता है. डॉक्टर ये दवा उन मरीज़ों को लेने की सलाह दे रहे हैं जो गंभीर रूप से संक्रमित हैं. लेकिन अब बाज़ार से ये दवा भी ग़ायब हो रही है. इस दवा को बनाने और बेचने वाली कंपनी सिप्ला इस वक़्त बढ़ती माँग को पूरा नहीं कर पा रही है. 


आमतौर पर इस दवा के 400एमजी की क़ीमत 3200 रूपये होती है लेकिन ब्लैक मार्केट में इसे 25000 रूपये तक की क़ीमत में बेचा जा रहा है.


ये क़ीमत इतनी ज़्यादा है कि इसे हर ज़रूरतमंद भारतीय नहीं ख़रीद सकता है. 


पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञ अनंत भान कहते हैं कि सरकार को इस दवा का भंडारण करना चाहिए था. 


वह कहते हैं, ''कई लोग जो इस दवा की आधिकारिक क़ीमत नहीं भर सकते वो कालाबाज़ारी की क़ीमत कैसे भरेंगे. ये दिखाता है कि सरकार के पास इसको लेकर कोई योजना नहीं थी. सरकार पूरी तरह फ़ेल हुई है.'' 


काले बाज़ार में अब नक़ली रेमडेसिवीर भी आ गई है. जब बीबीसी ने एक डीलर से बात करते हुए पूछा कि वो जो दवा दे रहे हैं वो नक़ली लग रही है, क्योंकि इस दवा को जिस कंपनी ने बनाया था वो भारत सरकार के तय मैन्युफ़ैक्चरिंग कंपनी की सूची में शामिल नहीं थी. 


इसके जवाब में डीलर ने कहा कि ये सौ फ़ीसद असली है. हालाँकि दवा की पैकेजिंग पर कई स्पेलिंग से जुड़ी ग़लतियाँ थीं जो कंपनी की दवाओं पर नहीं होती हैं. इस कंपनी को जब हमने इंटरनेट पर सर्च किया तो भी कोई जानकारी कंपनी को लेकर नहीं मिली. 


लेकिन लोगों में इतनी दहशत और मायूसी है कि वो उन दवाओं को ख़रीदने के लिए मजबूर हैं जिनके असली होने पर भी शक है. कुछ लोगों को नक़ली दवा देकर बेवक़ूफ़ भी बनाया गया है. लोग सोशल मीडिया पर सप्लायर्स का फ़ोन नंबर शेयर कर रहे हैं जो कि ऑक्सीजन से लेकर हर तरह की दवाएं मुहैया करा सकते हैं. लेकिन वो सारे नंबर सही नहीं हैं. 


आईटी कंपनी में काम करने वाले एक व्यक्ति ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि उन्हें इमरजेंसी में एक ऑक्सीजन सिलेंडर और रेमडेसिवीर दवा की ज़रूरत थी और उन्हें ट्विटर पर कोई लीड मिली. जब उन्होंने उस व्यक्ति से संपर्क किया तो उन्हें 10 हज़ार रुपए एडवांस में जमा कराने के लिए कहा गया. 


आईटी कंपनी में काम करने वाले व्यक्ति ने आगे कहा, ''जैसे ही मैंने पैसे ट्रांसफ़र कर दिए उस व्यक्ति ने मेरा फ़ोन ब्लॉक कर दिया.'' 


इतनी दहशत हो गई है कि ज़रूरत के समय लोग किसी भी चीज़ पर भरोसा करने के लिए मजबूर हो गए हैं और यही कारण है कि इन चीज़ों की ब्लैक मार्केटिंग फल-फूल रही है. 


कई राज्यों ने रेमडेसिवीर दवाओं की कालाबाज़ारी पर रोक लगाने का वादा किया है और कुछ लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है. लेकिन बावजूद इन सबके कालाबाज़ारी धड़ल्ले से हो रही है. 


अनुज तिवारी कहते हैं कि उन जैसे लोगों के पास इतनी महंगी क़ीमत देने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है. 


"ऐसा लगता है कि आप अस्पताल में अपना इलाज नहीं करवा सकते हैं और अब तो आप अपनों को घर पर भी इलाज करवा कर नहीं बचा सकते हैं.''

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